दोष

कितनी बेचैन है ये ज़िन्दगी भी हमारे मन की तरह, कभी खुद हँसाती है तो कभी मुँह मोड़ लेती है। न जाने क्यों ज़िन्दगी की महफिलों का रातों से क्या नाता है, रात गहरी हो तो वह भी खुद गहरी हो जाती है। रातों की करवटों से हम सब परेशान हैं पर हम स्वयं भूल जाते हैं कि आज की नींद इन्ही की बदौलत है। खुद से लड़कर, वपस आह भरकर और खुद के आसूँ पोंछना और कौन सीखा सकता है भला। रातों में फूलों की महक ढूंढने निकलोगे तो बगीचों में ही गुम हो जाओगे। यहां से यह प्रतीत होता है कि कर्म करने से नहीं बल्कि निभाने से होते हैं, जिस प्रकार हम दोष ढूंढने निकलते हैं, ढूंढते ढूंढते मिला न दोषी क्योंकि पाया दोषी खुद को ही। उसी प्रकार यदि हम पहले ही खुद के दोष कर्म को स्वीकार कर लें तो दोषी ढूंढने में समय बरबाद न होगा। आपका मन ही आपका हालातों से लड़ने का शिकार होना चाहिए न कि दिल, बिगड़े जो मन फिर वह दिल की भी न सुने। तात्पर्य है कि खुद को संभालने की शक्ति आपके अंदर ही है बस खोज सही होनी चाहिए, दूसरे तो बस उसी खोज की राह को भटकाने आते हैं।

download7987960083305798189.jpeg

Leave a comment

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.